**विकास**
चारों तरफ विकास की धुम है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
तीन बच्चों की अम्मा
दुध मूँहे बच्चों को छोड़ कर
प्रेमी विकास संग भाग गयी
मीडिया में खबर छोड़ कर
संविधान का हवाला देकर
पुलिस प्रशासन स्तब्ध है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
कैसा विकास कौन सा विकास
कहाँ विकास और किधर विकास
अंधेरे में उजालों का प्रकाश
गली और चौराहे का विकास
बनाकर ढ़ेरों सा नये कुबेर
हमारी सरकार संतुष्ट है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
देश में एक समान शिक्षा
न ही चिकित्सा ही हो पायी
अमीरी और गरीबी के बीच
बढ़ रही है गहरी खाई
देश प्रेम कटार की धार पर
विकास तहखानों मे कैद है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
किसानों की आत्महत्या
बढ़ती बेरोजगारी की भुख
मँहगाई की बेअवाज मार
नौकरशाहों के बेहिसाब सुख
देशभक्तों की सरकार पर
पुराने लुटेरे अभी एकजुट है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
निजी स्वार्थ है सर्वोपरि
विकास, बना दिया विनाश
रोटी दाल को श्रमिक तरसे
सबका टुट रहा विश्वास
देख दुर्दशा जनमानस की
कर्णधार भारत के मौन है।
देश का जनमानस मंत्रमुग्ध है॥
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