” विकास से बँचित “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कुछ दिन हुए ,
विकास का ढोल बजा ,
खुशियाँ मनायी गयी ,
जश्न मनाये गये !
कोई भूखा नहीं रहेगा,
रोजगार मिलेगा ,
सड़क और विजली के
स्वप्न दिखाए गए !!
महँगायी डायन को
सबक सिखाएंगे ,
सबके दिन फिर
लौटके आ जायेंगे !
“आत्मनिर्भर” बनने की
जो तमन्ना है ,
वो सपने हमारे ,
साकार हो जाएंगे !!
देश के हैं प्राण ,
गाँवों में ही बसते ,
उनकी मेहनत से ,
ही हम निखरते !
पहाड़, जंगल ,
झील ,झरने हमारे ,
रक्षाकवच बनकर ,
हमारे साथ रहते !!
आज उनकी ,
अवहेलना को देख लें ,
उनकी व्यथा को
हम जरा जान लें !
विकास उन पहाड़ों पर ,
पहुँचा कहाँ ?
उनके जीवन को ,
जरा पहचान लें !!
कुपोषण और दरित्रता ,
से लोग मरते,
वस्त्र के अभाव में ,
हैं दिन गुजरते !
भोली -भाली ,
लड़कियाँ और बच्चे ,
स्वप्न के संसार में
ही वे विचरते !!
स्वास्थ्य ,शिक्षा की
बातें कल्पना है ,
आज क्या खाएंगे ?
वह भी सोचना है !
यही है स्वप्न ,
“आत्मनिर्भर देश” का
नजदीक से अब ,
नेतृत्व को देखना है !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
28.07.2021.