विकास की सोच
सनसनी है हर तरफ आगमन विनाश का सोचिए क्या हस्र होगा देश के विकास का।
जो हैं आदृत लोग यहां वो कुर्सियां बचाते हैं,
उत्कोच के सहारे अपनी डफलियां बजाते हैं,
बिन पढ़े जब मिलता है नम्बर यूँही पास का,
सोचिए क्या हस्र होगा देश के विकास का।
उग्रवाद आतंकवाद का बढ़ रहा है कोप यहां,
छोटी छोटी बातों पर भी चल जाते है तोप यहाँ,
बदल रहा है नक्शा अब हर पल इतिहास का,
सोचिए क्या हस्र होगा देश के विकास का।
रूपयों पे बिक रहा है इमान आज कल,
अपनें ही अपनों का करता जा रहा क़तल,
हर तरफ तम तोम है अभाव है प्रकाश का,
सोचिए क्या हस्र होगा देश के विकास का