वाह-वाह की लूट है
वाह- वाह की लूट है ,लूट रहे सब संत
शास्त्र ज्ञात अक्षर नहीं ,चमकीले हैं दंत ।।1
वाह-वाह मन में भरा ,बहुत अधिक अभिमान ।
चूर सभी हैं दंभ में,जर्जर है पहचान ।।2
वाह -वाह की झूठ से ,दूषित हुआ समाज ।
वाह सभा श्रद्धांजली ,सत्य दिवंगत आज ।।3
वाह-वाह की धूम है ,करें सभी अब वाह ।
वाह दवा की पोटली ,हरती जीवन आह ।।4
बौराया मन वाह में ,तनी हुई है देह ।
पाँव तले धरती नहीं ,खिसके सबके नेह ।।5
वाह-वाह का बुलबुला ,फूट रहा दिनमान।
ऐंठ चढ़ी है शीश पर ,अधरों पर मुस्कान।।6
वाह-वाह दुनिया हुई ,छोड़ रहे सब लाज ।
अपनों से अपने भगे ,छूट रहा है साज ।।7
वाह-वाह बस वाह है ,वाह-वाह ही शाह ।
वाह-वाह जग में भरा ,वाह-वाह की चाह ।।8
वाह-वाह ने लूट ली ,रात दिवस का चैन ।
हुआ गुलाबी मन हृदय ,चुप आँखें चुप बैन ।।9
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी