वाह रे हिन्दी दिवस तू धन्य है।
मैं भारत का लाल और आप हरे, पीले, नीले, गुलाबी, नारंगी।सबसे पहले आप सभी भारत के माननीय, आदरणीय, सम्माननीय, सभ्य, शिष्ट, विशिष्ट, श्रेष्ठ, जेष्ठ, सर्वश्रेष्ठ जनमानस को मेरा करबद्ध सादर प्रणाम सहर्ष स्वीकार हो।आशा करता हूँ मेरा अभिवादन हृद्यांग हुआ होगा।साथ ही साथ विनित,विनम्र, नतमस्तक भाव से हिंदी दिवस की अनेक-अनेक, अशेष, अनंत, अपार शुभकामनाएं भी सादर समर्पित है।
आइए काम की बात पर आता हूँ मेरा आपसे सीध-साधा,सरल प्रश्न आप अपने जीवन में हिन्दी भाषा का कितना प्रयोग करते हैं?निश्चित तौर पर आप नहीं बता सकते हैं क्यों, क्योंकि कहीं न कहीं दूसरी भाषा का भी उपयोग आपके द्वारा किया जाता है अर्थात हिन्दी भाषा का पूर्णरूपेण प्रयोग नहीं होता है।और किया भी नहीं जा सकता।सच है ना।पूरा-पूरा झूठ बोलते हैं आप।आप करते ही नहीं।आपको आता ही नहीं।आप हिन्दीभाषी हैं?तब तो बड़े गर्व से कहेंगे की मैं हिन्दीभाषी हूँ।फिर ये दोहरा मापदंड कैसा?किसी भाषा को अपना कहते हैं और उससे अपनी दृष्टि भी चुराते हैं।आप धन्य है या आपका अपराध जघन्य है।मेरा आरोप गंभीर है पर अवास्तविक नहीं।
“देश की आशा, हिंदी हमारी भाषा”
भारत जैसे देश में जहाँ हिंदी45करोड़ लोगों के द्वारा बोली जाती है वहाँ”हिंदी दिवस”मनाना पड़ रहा है।इससे ज्यादा लज्जापूर्ण कुछ और नहीं हो सकता।चुल्लू भर पानी में डूब के मर जाना चाहिए प्रत्येक भारतीय को,मुझे भी।हम जनसंख्या में दूसरे स्थान पर और भाषा में चौथे स्थान पर।अब तो निर्लज्जता की सीमा का भी घनघोर उल्लंघन हो गया।कमाल है या हिंदी बेहाल है।जरा सोचना पड़ेगा।हम अपनी भाषा की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं, उसे पहचान नहीं दिला पा रहे हैं, उसे राष्ट्रभाषा नहीं निर्मित कर पा रहे हैं, उसे पूरे भारत वर्ष की भाषा नहीं बना पा रहे हैं अरे ये सब छोड़िए अपने श्रीमुख से बोल भी नहीं पा रहे हैं।हिंदी के लिए इससे”अच्छे दिन”और क्या हो सकते हैं?हम हिंदी से कितने दूर है और पास होने का कितना सर्वश्रेष्ठ अभिनय करते हैं।बिल्कुल ठीक उन फिल्मों की तरह।
हमें हिंदी दिवस मनाना पड़ रहा है कहने का तात्पर्य हिन्दी के लिए एक दिन विशेष निर्धारित करना पड़ रहा है।दैनिक जीवन में हिंदी का समावेश नहीं है।
केवल यही कारण है हमारे अपने कलेश की
सब सोचते हैं अपनी किसे चिंता बदलते परिवेश की
अंग्रेजी से इतना अनुराग उचित नहीं कदापि
स्वयं की पहचान मिटा देगी ये भाषा देश की
हम ये सोचते हैं कि हिन्दी दिवस मना लेने से हम हिन्दी को समृद्ध कर लेंगे, विकसित कर लेंगे, उत्कृष्ट बना देंगे।कल्पना की उड़ान है वास्तविकता से कोई सरोकार नहीं।
हमारी दृढ़ इच्छा अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम(इंग्लिश मीडियम)के पाठशाला में शिक्षा देने की।जैसे वहाँ अमृत की वर्षा होती है और हमारा बच्चा अजर,अमर हो जायेगा।कितना खोखलापन, आडम्बर, दिखावा और छल है।परिणाम तो “सोने पर सुहागा””शून्य में शून्य का योग”।हम जिस भीड़ में “भेड़ की चाल”में चल रहे हैं।उसका परिणाम उतना ही घातक सिद्ध होता है।
आपको मेरी भावना समझना होगा।मेरा युद्ध अंग्रेजी भाषा से किंचित मात्र भी नहीं है।मैं तो स्वयं अंग्रेजी का अध्यापक हूँ लेकिन आपसी संवाद और वार्तालाप की भाषा तो हिन्दी ही होनी चाहिए आपका माध्यम कुछ भी हो सकता है इससे कोई आपत्ति नहीं है।हिन्दी सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है।इस भाषा में सब समान हैं।कोई बड़ा(कैपिटल लेटर)या छोटा(स्माल लेटर)नहीं होता है।समानता का सर्वश्रेष्ठ गुण पाया जाता है।सुदृढ़ है, सशक्त है, प्रबल है, योग्य है, भावना व्यक्त करने में सक्षम है और तो और सर्वव्यापक है तो फिर इसे हम अपनी प्राथमिक भाषा और सर्वप्रमुख भाषा क्यों नहीं बना सकते?उत्तर प्रदान करेंगे या मौन मूकदर्शक बनकर हिन्दी का विध्वंस नाटक देखेंगे।
हिंदी हमारी भाषा नहीं अपितु स्वयं एक माँ है और आप कैसे माँ के लाल हैं जो संकट की घड़ी में अपनी माँ को असहाय अवस्था में छोड़ते हैं।मुझे तो आपके”लाल”होने पर भी एक संदेह और प्रश्न चिन्ह दिखता है।अन्यथा न लें।ये झापड़ मेरे गाल पर भी है और चेहरा आपका भी लाल है।”लाल की निर्लज्जता”से माँ अत्यंत पीड़ा और कष्ट का अनुभव कर रही है।पुकार रही है।आह्वान कर रही है अपने लाल को और लज्जा से लाल, लाल-पीला हो रहा है।आपके वक्ष में यदि हृदय हो और आप अपनी मातृभाषा की सच्ची संतान हो तो इस माँ की पीड़ा को समाप्त किजिए।
मात्र श्री नरेन्द्र मोदी के भाषण देने से हिन्दी के”अच्छे दिन”कभी नहीं आयेंगे।आपको भी पूर्ण बहुमत के साथ अपनी रगों में हिंदी का रक्त प्रवाहित करना होगा।व्यवहार में लाना होगा, अपनाना होगा, अपना बनाना होगा, गले से लगाना होगा।
आज भाषा की इस दुर्दशा के लिए अगर कोई उत्तरदायी है तो केवल हम और हम ही हैं कोई और नहीं।फिर अन्य पर दोषारोपण निरर्थक है।
मेरे प्यारे देशवासियों, अपनों से अपनों के सदृश्य प्यार करें।
हिंदी पर ये उपकार करें।
हिंदी की जय जयकार करें।
अविलंब
अब मैं कोई आमंत्रण-पत्र नहीं दूंगा आगे आने के लिए।
अपनी त्रुटि में सुधार
हिंदी के विकास का आधार
चाहिए आपका सहयोग
छोड़ दिजिए हठधर्मिता का योग
अपने जीवन में हिन्दी अभियान लायें
और सोई हुई अंतर्आत्मा को जगायें
मेरे शब्द रहेंगे शेष
हिंदी माँ को मिले स्थान विशेष
हिन्द के रहने वाले सभी वासियों को
मेरा शुद्ध हिंदी में साष्टांग प्रणाम पुनः
अपना ध्यान अवश्य रखें
यदि हिंदी भाषा स्वीकार न करें
तो हिंदी भाषा का तिरस्कार भी ना करें
यही निवेदन आपसे सर्वदा
मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ
अब जाग जाइए कृपा निधान
आप सुन रहे हैं मेरी जबान-ये आदित्य की ही कलम है श्रीमान
जय हिन्द जय हिंदी जय हिन्दवासी
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन के अलख की आग
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.