वाह! रे मिटी की किस्मत
***वाह!रे मिट्टी की किस्मत***
एक मिट्टी से इट्टे बनी है चार,
रचे मन्दिर,मस्जिद,विद्याद्वार।
रची उसी से मैखाने की दिवार,
वाह!रे मिट्टी की किस्मत।
एक मिट्टी से घडे बने है चार,
विराजे मन्दिर,मण्डप,घरद्वार।
विराजा वो ही श्मशान के पार,
वाह!रे मिट्टी की किस्मत।
एक मिट्टी से दीप बने है चार,
रखे है मन्दिर,आरती,घरद्वार।
रखा है उसे ही मुर्दे की मजार,
वाह!रे मिट्टी की किस्मत।
एक मिट्टी से देह बनी है चार
करती है दया,धर्म,परोपकार।
वो ही करवाती है अत्याचार,
वाह!रे मिट्टी की किस्मत।
✍️प्रदीप कुमार “निश्छल