वास्रग्विणी छंद
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(वास्रग्विणी)
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माँ हमारे नमन आज स्वीकार लो ।
चाहते कुछ नहीं मात्र पुचकार लो ।।
ज्योतियाँ ज्ञान की शारदे माँ जलें ।
आपकी छाँव में हम सभी माँ पलें ।।
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जो फँसे मोह में मुक्ति पाते नहीं ।
भोगते कष्ट भी यत्न भाते नहीं ।।
शोक क्यों तू करे मर्म को जान ले ।
है न माया किसी की सगी मान ले ।।
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जल बहुत कीमती व्यर्थ मत कीजिये ।
प्रेम से दान दें नेह से पीजिये ।।
है सुधा नीर ही हम सभी के लिये ।
नीर बिन सोचिये कौन कब तक जिये ।।
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राधे…राधे…!
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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