वास्ते हक के लिए था फैसला शब्बीर का(सलाम इमाम हुसैन (A.S.)की शान में)
वास्ते हक के लिए था फैसला शब्बीर का
और हक ने कर दिया फिर हक अदा शब्बीर का
क्या हुआ है इम्तिहाने -हक किसी का आज तक
कर्बला में जो हुआ है इम्तिहाँ शब्बीर का
सोग में डूबे हुए है दोनों आलम इस कदर
है ज़मी से आसमाँ तक तस्किरा शब्बीर का
नौके – नेज़ा पर फौजें उदू को एक पल में धर लिया
शेरे – नर अकबर है रन में लाडला शब्बीर का
उसको दुनिया में कोई ग़म सता सकता नहीं
जिसने अपनी जिंदगी में ग़म किया शब्बीर का
उस यजीदे -शाम की बैयत ना की हरगिज़ कुबूल
उस को क्या मालूम था क्या है हौसला शब्बीर का
सर देके मारकाये कर्बला को सर किया
किस तरह से अब बयां हो मर्तबा शब्बीर का
हम भी है जानों दिल से आशिके आले – नबी
हम पे भी नजरे- करम हो खुदारा वास्ता शब्बीर का…….
From my book Markaye-karbala….
shabinaZ.