#वासंती बयार#
इठलाती, मदमाती आई सखि ऋतु वसंत
बौराई कलियों पर छाया तरूणाई का रंग ,
वासंती चुनर ओढ़े, प्रकृति की निखरी छटा
लहराती पवन चली, सुरभित है दिग-दिगंत।
गूंज उठी अमराई, कोयल की कूक से,
अभिलाषाएं हरषाई, मन में उठी हूक से,
मन्मथ ने थाम लिया, हाथों में पुष्प बाण
करने हो ज्यों चला, कामनाओं का संधान।
रक्तवर्णी पलाश प्रसून , तन-मन दहका रहा,
मानिनी वासंती पर मधुरस छलका रहा,
मधुमाती गंध से, सुवासित है वन उपवन,
भौरों की गुंजन से, गुंजित है हर्षित मन,
केसरिया रंगों पर झर रहा मकरंद है,
अभिसारित गीत और नेहबद्ध छंद हैं,
कोय़लिया कुहूक रही, प्रीत की रीति नवल,
तृषित आशाओं पर , बिखरा है रस अनंत.
इठलाती, मदमाती आई सखि ऋतु वसंत.