वाल्मिकी का अन्याय
सीता तो रही सदा ही उपेक्षित
पातिव्रत, सतीत्व रहा सदा अपेक्षित
महान शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई राम ने
जय जयकार हुई, जानकी को पाया राम ने
स्वयंवर के लिए क्यों थी यह अनोखी शर्त
शिव धनुष पर ही क्यों बल आज़माए आर्यावर्त?
खेल खेल में सीता ने उस धनुष को उठाया था
अपना बल व साहस सभी को दिखलाया था
राम की ब्याहता बन जब कौशलपुर आ गई
तो उसकी शक्ति, बल व वीरता कहां वीगई?
अब वह केवल राम की अनुगामिनी थी
वन प्रस्थान के समय, बनी बस संगिनी थी।
तब भी वाल्मीकि ऋषि अन्याय उस पर कर गए
राम लक्ष्मण तो सुसज्जित वेश क्षत्रिय में गए
किन्तु क्षत्राणी को क्यों पति की शरण ही कर गए?
क्यों नहीं धारण उसे शस्त्रास्त्र करने को दिए?
लंकेश से भिडने का साहस एक पक्षी कर गया
शिव धनुष को डोलने वाली को रावण हर गया ?
क्यों नहीं कुछ भी अहित राक्षस का कर पाई सिया ww
फेंक आभूषण ही पाई, क्यों बनी बंदी सिया?
राम ने लंका को जीता, दमन रावण का किया
हों सुरक्षित प्रभु मेरे, दिन रात रटती थी सिया
दुष्ट का करके दमन, वे पास मेरे आएंगे
सीते ! मेरी प्राण प्यारी कह गले लग जाएंगे।
नयन से अमृत झरेगा, हृदय का मृदंग बजेगा
पा सुरक्षित शत्रु गृह में, मन मुदित हो जाएंगे।
दिन गया करते प्रतीक्षा, होने आई सांझ थी
राम न आए थे लेने, किन्तु भेजी पालकी ।
करो अग्निप्रवेश सीता, है परीक्षा ये तेरी
शत्रु के घर में रही तुम, फिर सती कैसे रही ?
जल गया अस्तित्व उसका, शेष छाया ही रही
पूछना चाहती बहुत कुछ, मौन पर सीता रही
सोचना क्या ? पूछना क्या ? जो रहा अपना नहीं
था अयोध्या का वो राजा, मेरा वो सपना नहीं
भार्या थी वो, रानी भी थी, पत्नी भी बन कर रही
प्रेयसी के पद से खुद को खुद अलग वह कर गई ।
नारियाँ पुजती जहां, मिलता उन्हें सम्मान है
सुना था वो देश, मेरा भारतवर्ष महान है ।
पूजते पत्थर की नारी, जिंदा को वनवास है
नमन है , हे जगद्गुरु तुम्हें, बारम्बार प्रणाम है!
मंजु सिंह गुप्ता