वारिद ने है प्यास बचझाई
वारिद ने है प्यास बुझाई
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नभ मे गरज रहे हैं बादल
धरती पर काली घटा छाई
उमड़ उमड़ बरसते बादल
प्यासी वसुधा,प्यास बुझाई
नीर लेने जाएं श्वेत बादल
जल भर लाएं श्याम बादल
बरसने से पहले हैं गरजते
आने की खबर दे है सुनाई
जीव जन्तु थे सभी प्यासे
पशु पक्षी फिरते थे प्यासे
वन वनस्पति गई झुलस
फूल पत्तिया थी मुरझाई
तप रही थी अवनि कब से
बूँदे बरसेंगी ये कब नभ से
मच रही बहुत त्राहि त्राहि
मेघदूत से थी गुहार लगाई
किसानी के बढ़ रहे मसले
खेतों में बुझी बुझी फसलें
ताल तलैया तालाब सूखे
गगन में थी नजर घुमाई
पयोधर ने सुन ली पुकार
वर्षण की लगा दी बौछार
पूर्ण कर दी सबकी गुहार
चारों ओर हरियाली छाई
छम छम बरस रहे बादल
आग शांत कर रहे बादल
स्वर्णिम शीत सी बूँदों सें
वारिद ने है प्यास बुझाई
सुखविन्द्र बलिहारी जाए
जन निर्जन गुण हो जाए
खिल गई है क्यारी क्यारी
बारिशों की झड़ी लगाई
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)