वायदे तो वायदे है,वायदों का क्या !
वायदे तो वायदे है ,वायदों का क्या ,
पूरे हो ना हो पड़ता है फर्क क्या ?
वायदे सरकार ने किया था कभी ,
काला धन विदेशों से आया क्या ?
आया काला धन तो गरीब निहाल ,
मगर उनके खातों में आया क्या ?
ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी ,
धन आया ही नहीं तो बंटेगा क्या ?
यह वायदों की बरसात तो होती रहेगी,
मगर इनसे कुछ उपज सकता है क्या ?
वायदे सरकार करती है नौकरियां देने की ,
मगर नौकरीयां किसी को मिली है क्या ?
देश को धनवान और विकसित बनाएंगे !
भला कैसे और कब ,कोई बताएगा क्या ?
नगरों और गांवों में सड़को की मुरम्मत ,
कब होगी किसी को कुछ मालूम है क्या ?
वायदों का क्या चाहे जितने मर्जी कर लो ,
टूटने ही तो है तोड़ दो ,फर्क पड़ता है क्या?
जनता की मजबूरी या आदत बन गई अब,
उनके वायदों पर भरोसा न करे तो करे क्या ?
किन्ही वायदों के भरोसे उम्मीद बढ़ जाती है,
उम्मीद के सहारे ख्वाब देखता है क्या क्या !
“हमारे वायदे पर यकीन ना करो”कौन कहेगा ?
कपट हो जिसके मन में वो ऐसे कहेगा क्या ?
हम कहते है किसी पर भरोसा ही मत करो,
खुद को अंधेरे में रखने का फायदा है क्या ?