वायदा-एक मजाक
वायदा- एक मजाक
(?मनीभाई रचित)
क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ते हो साहब ?
वो तो हमने मजाक में कह दिया
ताकि तसल्ली हो जाए
कि क्यों चुन रहे हो आप हमें ?
हमें खोलकर मत दिखाओ
हमारी वादों की पोटलियाँ
हमारे खयाली आम खाओ
गिनते क्यों हो गुठलियाँ ?
यूं जागकर क्या करोगे ?
क्यों रहते हो बेचैन से ?
जब तक हैं हम रखवाले ,
तुम सोते रहो चैन से ।
हम फिर आएंगे जगाने को
पांच बरस के बाद।
फिर सुन लेंगे इत्मीनान से
क्या है आपकी फरियाद?
तब तक क्यों टांग अड़ाते हो साहब ?
क्या नहीं डेमोक्रेसी पर विश्वास ?
हम वही जनप्रतिनिधि हैं
जिन्हें चुना था तुम्हारे ही लोग ।
जब तक सत्ताधारी हैं
करने तो दीजिए थोड़ा भोग ।
हमारी वायदों का क्या है ?
वह तो फिसलती जबान है ।
धर्म ,जात-पात के लिए
मानो तीर कमान है ।।
हमारी बातों का बुरा क्यों मानते हो साहब ?
क्या हमने गौर किया आपकी बातों का?
हमारे आसूँ घड़ियाल के हैं ।
हमारे रास्ते भेड़चाल के हैं ।
हमें डर है कुर्सी का हिलना
हमारे कदम देखभाल के हैं ।
हमारी महफिल क्यों नहीं आते हो साहब ?
आते तो बताते ,
कितना आनंददायक होता है ?
बुरी घटना पर कड़ी निंदा करना ।
यूं ही मजाक मजाक में,
लोगों को छलना।।
( मनीभाई रचित)