वादा
बहुत हिल हुज्जत के बाद पिता ( रंजना यानी मै ) मेरे अंतरजातीय विवाह के लिए राज़ी हुये थे परंतु एक बात उन्होंने ख़ास करके कही कि ” तुम समझदार हो तुम्हारे मन की होने दे रहा हूँ अपनी समस्याओं को खुद सुलझाना और बर्दाश्त करने की आदत डालना और बात – बात पर घर दौड़ी मत चली आना ” सर हाँ में हिला दिया मैने ” विवाह के कुछ साल बाद अपने दो बच्चों और पति के साथ ससुराल छोड़ना पड़ा पास ही एक किराए के घर में शिफ्ट हो गये ।
सब अच्छे से चल रहा था एक दिन पति को खाना परोस कर दिया तभी किसी बात पर बहस शुरू हो गई पतिदेव ने थाली उठाई और दिवार पर दाल – चावल – सब्जी – चटनी – सलाद और रायते की चित्रकारी कर डाली , बिना कुछ बोले मैं उठी उस बेढंगी चित्रकारी को दिवार और ज़मीन से साफ किया फिर रसोई में जा कर थोड़ी देर खड़ी रही सोचा बच्चों को ले माँ के घर चली जाऊँ तभी पिता की कही एक – एक बात कानों में सुनाई देने लगी । अपनी जली रोटी खुद ही खाना था और पिता से किया वादा भी निभाना था…सर झटका और पतिदेव के लिए दूसरी थाली परोसने में लग गई ।
स्वरचित , मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/12/2019 )