वादा
अभी अभी अंजू को ऑपरेशन के लिए ले गए थे. स्थिति तनावपूर्ण थी. डिलीवरी की तारीख़ बीस दिन बाद की थी किंतु अचानक अंजू को तकलीफ़ होने लगी. डॉक्टर ने सिज़ेरियन का सुझाव दिया. खबर सुनते ही बजाज साहब अस्पताल पहुँच गए. उन्होंने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की ‘मेरी बच्ची की रक्षा करना.’
उनके दामाद ने एक कप चाय लाकर दी. “सब ठीक होगा आप परेशान ना हों.” दामाद ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा.
चाय पीते हुए बजाज साहब अतीत में खो गए. सात साल की अंजू को वह दशहरे का मेला दिखाने ले गए थे. वह उनकी उंगली पकड़ कर चल रही थी. कौतुहलवश हर एक चीज़ के बारे में पूँछ रही थी. अचानक भीड़ में कुछ हलचल सी हुई. उस आपाधापी में उनकी उंगली अंजू के हाथ से छूट गई. वह भीड़ में कहीं गुम हो गई.
वह घबरा कर इधर उधर ढूंढ़ने लगे. एक एक पल भारी लग रहा था. तभी एक कोने में खड़ी अंजू दिखाई दी. वह घबराई हुई थी और रो रही थी. उन्हें देखते ही भाग कर आई और उनका हाथ कस कर पकड़ लिया.
बजाज साहब ने समझाया “अब क्यों रो रही हो. मैं हूँ ना तुम्हारे साथ.”
अंजू ने सुबकते हुए कहा “आप नही थे तो मुझे बहुत डर लग रहा था पापा. प्रॉमिस मी मुझे कभी छोड़ कर नही जाओगे.”
उन्होंने अंजू को गले से लगा लिया “बेटा पापा तुमसे वादा करते हैं. जब तक ज़िंदा हैं तुम्हारी हर मुसीबत में तुम्हारे साथ होंगे.”
नर्स ने बाहर आकर खुशखबरी सुनाई “बधाई हो बेटी हुई है.”
कुछ समय बाद जब उन्होंने अपनी नातिन को गोद में लिया तो ऐसा लगा जैसे नन्हीं सी अंजू ही उनकी गोद में हो.