वाचाल
वाचाल
मूर्ख बहुत वाचाल बड़ा है।
सड़क मध्य में सदा खड़ा है।।
राह सभी का रोक रहा है।
मनमाना वह टोक रहा है।।
बिन सोचे सब कह जाता है।
खुद का देउर ढह जाता है।।
अपने पग में मार कुल्हाड़ी।
बना हुआ है एक अनाड़ी।।
विद्वानों से नहीं सीखता।
अपने को विद्वान समझता।।
पात्र बना उपहास घूमता।
अपना माथा स्वयं चूमता।।
ज्ञानशून्य बनता है वक्ता।
कहता खुद को महा प्रवक्ता।।
अनुभवहीन अपावन भाषा।
कौन करेगा उससे आशा??
अपनी करनी का फल पाता।
कभी कदापि जेल भी जाता।।
तर्कहीन बातें करता है।
मरियल कुक्कुर सा रहता है।।
अपना घर बर्बाद किया है।
तुच्छ भाव का नाद किया है।।
झटपट में वह निर्णय लेता।
किन्तु नहीं वह कुछ भी देता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।