“वाइसाइकिल”
(संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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बचपन से ही मुझे अद्भुत कुछ करने को जी करता था ! सिनेमा देखना ,कब्बाली प्रतियोगिता ,नाटक ,खेलकुद ,जादुई करिश्मा ,वाइसाइकिल शो ,सर्कस इत्यादि मेरे आकर्षक के केन्द्रबिन्दु होते थे ! इसकी अमिट छाप मेरे मनोमस्तिष्क पर छाई रहती थी ! सपने में मैं इन्हीं दुनियाँ में खो जाता था ! मेरे बचपन के दोस्त इन सब की कहानियाँ बड़े चाव से सुनते थे ! सिनेमा की कहानियों को मैं हूबहू कहता था !
मुझे याद है सन 1961 में डांगालपाड़ा ,नगरपालिका प्राइमेरी स्कूल ,दुमका में मैं पाँचमी कक्षा में पढ़ता था ! हमलोग जमीन पर बैठकर पढ़ते थे ! कोई सुविधा नहीं थी ! ना टेबल ना बैंच किसी क्लास में हुआ करते थे ! टीचर के लिये एक कुर्सी होती थी ! हमारे क्लास के एक -एक लड़के और लड़की की हरेक दिन ड्यूटी होती थी कि क्लास टीचर को पंखा झेलते थे ! और क्लास टीचर ठंडी -ठंडी हवा खा कर सो भी जाते थे !
यही एक मौका होता था क्लास से कट मारने का ! मेरे स्कूल के पास ही ,अंग्रेजों के जमाने से एक गांधी मैदान था और अभी भी है ! उन दिनों वाइसाइकिल शो हो रहे थे ! एक गोलाकार मंच बना था ! लाउड स्पीकर बजते थे ! और एक आदमी लगातार तीन दिनों तक वाइसाइकिल चलाता रहता था ! दिन रात वाइसाइकिल पर ही रहता था ! खाना ,पीना और दैनिक परिचर्या उसी पर करता था ! मैं स्कूल से भागकर उसके करतब को देखता था !
कभी सर्कस का अनुकरण किया तो कभी सिनेमा में जॉनी वाकर को देख कर ! आज मैं इस दौर में भी कुछ कर लेता हूँ ! यह आपलोगों का प्यार है !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
11.02.2022.