व़ुजूद
मैं तो स़हरा -ए – सफ़र का स़राब हूं।
स़फर में ग़ुम जो मिला नहीं,
वो ग़ुमश़ुदा सी तलाश हूं।
मैं गम़े जहाँ की किताब़ हूं ,
के सरापा हुज़्नो मलाल हूं।
ढूंढता क्या है मुझ में ए मेरे हमसफर ,
जो ख़िज़ाँ में डूबी है वो बहार हूं मैं।
दिल मेरा दरिया सही , पर जो खत्म ना हो वो
तिश़नगी हूं मैं।
हय़ाते सफ़र की मैं रोश़नी नहीं ,
शब़े गम़ तीरग़ी की मिस़ाल हूं मै।