वह होती है माँ
कहा किसी ने मुझसे
कि बेटा
हर टेढ़ी मुश्किल में
इस जग में किससे रखे
तू आशा
बिन सोचे समझे मैं बोली
माँ………
पूछा गया फिर मुझसे
बता
क्या है माँ की परिभाषा
तो जवाब था मेरा
दुख की तपिश के थपेड़े
जब रहते मुझे घेरे
तब….
तब बिन पूछे
फेरकर सिर पर हाथ
दे जो स्नेह सिक्त
दिलासा के ठंडे छींटे
वह होती है माँ
अवतरण के लिए मेरे
जो दे तिलांजलि
अपने मन नहीं तन की भी
और
त्यागकर मोह अपना
सौन्दर्य खोने का
क्यों कि इन सबसे
मैं थी अनमोल उसके लिए
वह होती है माँ
जब थी मैं अबोध
बुद्धू
मूर्ख और मासूम
तब उसने की अपनी बुद्धि ज्ञान और शक्ति
न्योछावर निस्वार्थ ही
निज जीवन के
सबसे खूबसूरत सुनहरे पल
दिए दान मुझे
बिना कुछ बदला मांगे
वह होती है माँ
बिन जाने जो
पढ़ ले मुझे
बिन बोले जो
सुन ले मुझे
बिन नजदीक आए
जो संभाल ले मुझे
वह जो पढ़ ले मेरी आँखों को
मेरे तन मन को
मेरे
मूक रहने पर भी
और लगाती रहे सदा
आशीर्वादों की छतरी
रक्षित रखे मुझे
सदा दुख के ओलों से
वह होती है माँ
जो पलक झपकने के हज़ार वें हिस्से से भी पहले
कूद जाती है मेरे दुखों की खाई में
डुबो डालती है खुद को
मेरी पीड़ा के सागर में
उड़ा डालती है खुद को
मेरे दर्द के झंझावातों में
और निकाल लेती है
मुस्कुराहटों के तिनके, आशाओं के मोती
और
दे देती है प्यारी सी झप्पी
उन दर्दनाक थपेड़ों के बीच से भी
वह होती है माँ
स्नेह की बौछार है माँ
ममता की बगिया है माँ
खुशियों की रंगोली है माँ
करुणा की सरिता है माँ
दया का अवतार है माँ
त्याग की देवी है माँ
स्नेह प्रेम की प्रतिमूर्ति है माँ
हाँ यही है वह प्यारी हस्ती
जो होती है माँ
एक हसरत थी मेरी
कि जिस तरह
जन्म लिया माँ की कोख से
उसी तरह अंतिम सांस मिले
माँ की गोद में
इससे बड़ा सौभाग्य क्या
पर ये हर किसी को नसीब नहीं
मेरी प्यारी माँ
तेरे चरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।
क्षमा करना मुझे
माँ
तुझे बयान करना
नहीं है माँ आसान
केवल इतना है कहना मेरा
तू धरती पर है मेरा भगवान्।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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