“वह मृदुल स्वप्न”
सभी प्रिय मित्रों, को ” हिन्दी दिवस” दिनांक 14/09/2024 की बधाई स्वरूप एक कविता सादर प्रस्तुत है
” *वह मृदुल स्वप्न”*– 💓
बात रात की कहूँ किस तरह, कवि था कैसा अटका,
मृदुल स्वप्न मेँ सुन्दर बाला, लगा ज़ोर का झटका l
यौरुप की कवियित्री, के दर्शन कर था दिल धड़का,
हुआ स्मरण, जब था मैं बस, बीस वर्ष का लड़का।
चन्द्र-मुखी, थे अधर रसीले, नीले मादक नयना,
केश सुनहरे, गौर वर्ण, बाँकी चितवन, क्या कहना।
पेँग दिलाया, एक ज़ोर का, झूले से मन भटका,
पर विलुप्त हो गयी कहाँ, शिख़चिल्ली का ज्यों मटका।
गई कहाँ, मुड़-मुड़ देखूँ, था मुझे, हो गया खटका,
व्योम दिखाकर, उसने ज्यों हो धरती पे ला पटका।
“आशा” बँधती पर न ठहरती, कहाँ नहीं मन छिटका,
सुरा-सुन्दरी, संगम अद्भुत, पैग तुरत इक गटका..!
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