वह पागल औरत
पागल औरत
चौराहे पर हंगामा हो रहा था लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे :
” न जाने किसका पाप पेट में पाले घुम रही थी यह पागल आज वह सामने आ गया ।”
वह पागल औरत तड़प रही थी तभी किसी भले मानस ने एम्बुलेंस को फोन कर दिया ।
मेरी जिज्ञासा जागी और उस तरफ गया । जब तक एम्बुलेन्स आई वह बच्चे को जन्म दे चुकी थी । आसपास की पाशकालोनी के लोगों ने दरवाजे बंद कर लिए थे हाँ झुग्गियो से कुछ औरते जरूर निकल कर आई ।
वह पागल औरत बच्चे को सीने से लगा कर भरपूर प्यार दे रही थी ।
तभी एम्बुलेंस आ गयी और दोनों को अस्पताल ले गयी। लोग अभी भी उस औरत को बुरा भला कह रहे थे
लेकिन लोग उस आदमी के लिए चुप थे, जिसने औरत को इस हाल तक पहुंचाया था ।
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल