दोस्त न बन सकी
कक्षा ७ का परीक्षा परिणाम आ गया था। सारे सहपाठी खुश थे। फतह बहादुर और उसके दोस्त भरत कुमार का मन बैठ गया, दोनों का परिणाम एक सा था,भरत तीन विषय में फतह गणित में फेल थे। जैसा सोचा था परीक्षा परिणाम उसके बिल्कुल प्रतिकूल आया । भरत तो पहले भी पढ़ना नहीं चाहता था, लेकिन भरत को अपने दोस्त के फेल होने पर बहुत दुख था। भरत सोचता था, मैं पढ़ने में औने पौने हूँ लेकिन फतह तो अच्छा है। फतह को सब विषय में अच्छे अंक मिले थे केवल अंक गणित में 06 अंक मिले थे। फ़तह सोच रहा था घर में सब क्या कहेंगे। यही सोच कर बेचारा फत्ते रुंआसा सा हो गया।
बाबू गिन के पचास बात सुनाएंगे, हो सकता है बाबू जुतियाय भी दें।
पिता के स्वभाव से फत्ते परिचित था। बाबूजी कहेंगे-
‘सरऊ 50 मा 17 नबंर भी नहीं लाय पायो। कम से कम पास तौ होई जातेव।
साल खराब करके बईठ गयो।’
बड़े भैया भी हम पर सवार हो जाएंगे कहेंगे हम सतएँ मा फर्स्ट डिवीजन पास हुए थे कभी फेल नहीं हुए और आज देखो डाक खाने का बड़ा बाबू हूँ।
‘पूरे साल लोफड़ई किया होगा।’
बहन तो सीधी है वह कुछ नहीं कहेगी।
अम्मा तो कभी कुछ कहती नहीं ।
यही सब सोचते फत्ते घर के दरवाजे पर पहुँच गया ।
सबसे पहले बाबू ही टकरा गए।
“बेटवा का भा नतीजा कै।”
फत्ते कुछ न बोला,
“का है हो।”
“काहे मुंह लटकाय हौ”
बाबू जी फेल गए हम। फत्ते बोला।
आँय! ई का कहत हौ।
‘यार! साल खराब होइगा।’
‘यै मास्टरौ भी उल्लुपंथी कय जात है, लरिका का फेल कै दिहिन।
अरे कौनो कलक्टरी कै पढ़ाई तऊ आय न, जऊन फेल कर दिहिन।’
इतने पर फत्ते की अम्मा भी सर का पल्लू ठीक करते हुए बाहर आ गई। बोली-
“का भा, काहे बरबरात अहौ।”
‘कुछू नहीं,
अपने फते बहादुर फेल होइगें।
अरे दैया! ‘हमार पुतवा फेल होइगें। नास होइ जाय मास्टरन कै।’
फत्ते सोच रहा था क्या हो गया आज, उल्टी गंगा कैसे बह रही है। कोई कुछ भी नहीं कह रहा है।
बाबू बोले-
अच्छा जाव भीतर, जौन भा तौन भा।
फत्ते अंदर गया देखा बहन बैठी थी,
पूंछा क्या बात हैआज सारे लोग इतनी शराफत से कैसे पेश आ रहे हैं।
बहन ने बताया,
कोई लड़का फेल हो गया था नदी में छलांग लगा दिया और मर गया।आज के अखबार में छपा है। तुम्हारे आने से पहले अम्मा बाबू बतिया रहे थे। कह रहे थे ,
‘हमरे फतह बहादुरव कै
गणित कमजोर आहै, देखव का हुवत है।’
अम्मा बाबू का खूब समझाइन है।
फतह बहादुर की आंखे नम हो गयी कि मां बाप अपने बच्चों को भले डांटते हो लेकिन उनके कल्याण के प्रति कितने संवेदनशील हैं। फत्ते आज खुद से एक संकल्प लिया,
मुझे कुछ बन के दिखाना है।
फ़तह बहादुर अपने बाबू के पास गया और बोला-
बाबू! इस बार मेरा नाम सरकारी स्कूल से कटवा कर श्यामगंज के ‘बाबा जूनियर हाई स्कूल’ में लिखवा दो, वहां पर सातवे फेल को भी आठवें में ले लेते हैं। मैं आठवें में नाम लिखाकर खुब मेहनत करूंगा।
पिता से सहमति मिल गयी।
इंतजार था गर्मी की छुट्टी खत्म हो और फत्ते अपना दाखिला श्यामगंज में आठवें में ले ले।
जुलाई का महीना फत्ते अपना दाखिला कराने की इच्छा से विद्यालय के परिसर में पहुचा। कार्यालय में प्रवेश की प्रक्रिया जानना चाहा । लिपिक ने कक्षा ७ के गणित अध्यापक से मिलने को कहा।
गणित अध्यापक राजेश सिंह थे, कक्षा में 5 लड़कियां 30 लड़के थे।
पूरी कक्षा में मनोरमा सबसे सुंदर होने के साथ पढ़ने में सबसे अव्वल थी, 60% से ऊपर ही अंक आते थे।
जब फत्ते मिलकर अपना प्रयोजन बताया तो अधयापक ने परख करने की मन्सा से गणित के जोड़ का सरल सवाल दिया, भाग्य को पलटना था, सवाल गलत हो गया। अध्यापक बोले इसी बूते पर आठवें में एडमिशन कराने आये हो।
मनोरमा ने ठहाका मार कर ऐसे हंसी,
जैसे द्रोपदी ने दुर्योधन पर हंसा था।
फत्ते को बहुत दुख हुआ। वह व्यंग भरी हंसी अंदर तक झकझोर दिया।
बहरहाल फत्ते को सातवीं में ही प्रवेश मिला।
अब रोज रोज हर दिन मनोरमा के साथ पढ़ाई का सिलसिला चल पड़ा।
क्योंकि पढ़ने में बहुत अच्छी थी, पूरे विद्यालय में अध्यापक और विद्यार्थियों की चहेती थी। वहीं दूसरी ओर फत्ते एक असफल विद्यार्थी। लेकिन वह हंसी रोज शूल की तरह चुभती थी। जबकि मनोरमा फत्ते को बहुत अच्छी लगती थी। वह चाहता था मनोरमा इसकी दोस्त बन जाय, लेकिन अंतर्मन की प्रतिस्पर्धा उसे रोकती थी। मन में बस एक ही लक्ष्य मनोरमा से ज्यादा नम्बर लाना है।
मगर कैसे होगा अंक गणित बहुत कमजोर है। फत्ते ने रात में देर तक जाग कर पढ़ने लगा, कुंजी पुस्तक भी ले आया। रात में जब सोने के लिये लेटता तो पढ़े हुए सबक दोहराता। मां बाप भी सन्तुष्ट हो गए थे, बेटा श्यामगंज के स्कूल जाकर मेहनती हो गया था।
कुछ समय बाद तिमाही परीक्षा हुई।
फत्ते ने काफी सुधार किया था। सभी विषय में पास। गणित में 22/50 नम्बर। कुल मिलाकर 280/650 ।
मनोरमा के 324/650। फत्ते पर किसी ने गौर नहीं किया था। मनोरमा भी बेखबर थी कि उसका कोई पीछा कर रहा है और उसे हराना चाहता है।
छमाही परीक्षा,
फत्ते के 368/650,
मनोरमा 356/650।
अब सबका ध्यान फतह बहादुर की ओर गया था। मनोरमा को भी बड़ा झटका लगा, उसके इलाके कोई अजनवी प्रतिद्वंदी घुस आया था। वह भी सजग चौकन्नी हो गयी थी। फतह को अपना साम्राज्य खड़ा करने की जिद थी। मनोरमा को सिंहासन जाने का खतरा मंडरा रहा था। दोनों जी जान लगा कर पढ़ाई कर रहे थे।
वार्षिक परीक्षा
फ़तह बहादुर 423/650 (गणित में 32/50 अंक)
मनोरमा 398/650
बदला पूरा हो गया, मनोरमा अब नम्बर दो पर थी।
फतह बहादुर किला फ़तह करके स्कूल का नया टॉपर बन कर आठवीं में प्रवेश लिया। विद्यालय के नियम के मुताविक फतह बहादुर की फीस माफ। अब फ़तह बहादुर को नम्बर वन बने रहने का जुनून सवार गया था। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पूनम, संतोष रजनी, सारी लड़कियां और लड़के फत्ते से पढ़ाई की टिप्स लेते थे, लेकिन मनोरमा दूरी बना के रखी थी। चूंकि फत्ते का भी इंतकाम पूरा हो गया था। बालकिशोर मन बार मनोरमा से बात करना चाहता था, दोस्ती करना चाहता था। अच्छी लगती थी। कभी कभी स्कूल से आकर फत्ते अपने दोस्त भरत से कहता था, यार! हमको मनोरमा अच्छी लगती है पढ़ते समय मेरे ख्यालों में आ जाती है। भरत कहता, यार बड़ी मुश्किल से पढ़ाई सम्भली है। वैसे भी सयानों ने कहा है “लौंडिया की दोस्ती जान का खतरा”।
आखिरकार आठवीं की परीक्षा हुई, परिणाम आये, फतह बहादुर इस बार भी अव्वल । सब उच्चतर शिक्षा के लिये कॉलेज रुख कर लिया। कॉलेज में अलग अलग विद्यालय से विद्यार्थी आये थे, तब भी फत्ते कॉलेज में पांचवी रैंक से नीचे नहीं गया। फत्ते स्नातक कर करके पी सी एस में अच्छी रैंक लाया। मनोरमा कहाँ गयी, अब कहाँ है, कुछ नहीं पता। “मनोरमा फत्ते की दोस्त न बन सकी।”
आज फत्ते जिला गाज़ियाबाद की लोनी तहसील का डिप्टी सुरिंटेंडेंड ऑफ पुलिस है। भरत गांव मे खेती बाड़ी करता है। लेकिन पद पैसा आने के बावजूद भरत से दोस्ती अब भी पहले जैसी ही थी, दोनों मिलने पर अवधी बोली में बात करते हैं। आज फत्ते गांव आया था।
उसके साथ पत्नी शालू बेटी वैदेही थी।अम्मा बाबू , बेटे बहु पोती को देखकर बहुत खुश थे। फत्ते जब भी घर आता, सभी लोगों के लिये कुछ न जरूर लाता था। चहेती बहनअपनी ससुराल में थी। भरत के लिये भी उपहार सोच रखा था। भरत की साइकिल पुरानी हो गयी थी। अगले दिन भरत मिला। दोंनो बहुत खुश थे। फत्ते बोला – यार भरत ! अब तौ बचपन वाली आजादी नहीं है। स्कूल मा जौन तू चबैना ले जात रह्यो चबाय मा केतना मजा आवत रहा, अब तौ केतना कुछ खाय का अहय लेकिन ऊ मजा नहीं आवत।
भरत- “अच्छा भैया फत्ते ! ड्यूटी पर भी अइसन बोलत हौ”
नो माई फ्रैंड,
ऐट ड्यूटी टाइम सो मैनी ‘झाम ताम’,
यूनिफार्म,गॉगल्स, कार, रेडियोसेट, दारोगाज अ लॉट ऑफ पुलिस जवान। एव्री वन से मी साहब एंड सर्।
“और तोहरी भौजी का सब लोग मैडम कहत हैं। हा हा हा हा….।”
अच्छा भरत यार! एक दोस्त है हमारा। उसके लिये एक गिफ्ट लेना है। मैं सोचता हूँ, उसको कुछ दूँ तो वह बुरा तो नहीं मान जाएगा।
भरत बोला-अगर दोस्त है तो बुरा क्यों मानेगा।
किसको देना है। है एक बचपन का यार।
तो दे दो।
वैसे भी ”
आज महोबा सब लायक है पारस देहे आहै भगवान।”
चलो फिर मेरे साथ बाज़ार।
भरत बोला, 5 मिंट रुको, गैया की चारा दे दूं फिर चलते हैं।
थोड़ी देर बाद दोनों बाजार के लिये निकल पड़े।
बाजार में उनको साइकिल की दुकान पर जाना था । दुकान के सामने
देखा कोई खूबसूरत महिला कार से उतर रही है। नीली साड़ी, चश्मा लगाए हुए बिल्कुल सजी संवरी।
फत्ते पहचान न पाया। जब उसने चश्मा उतारा तो फत्ते कहता है अरे! यह तो मनू है। (भरत ने मनोरमा को कभी नहीं देखा था।) भरत पूछता है, कौन मनू। मुझे स्कूल में टक्कर देने वाली स्टूडेंट मनोरमा। भरत भी गौर से देखा, बोला -भई तू कहता था पढ़ाई में दखल पड़ता है, वाकई किसी की भी पढ़ाई में दखल डाल सकती हैं यह मोहतरमा।
फत्ते कहता है ऐसा न बोलो यार।
चलो मिल लो,भरत बोला।
नहीं यार।
बहुत दिन हो गए।
अब वह लड़कपन वाली सोच नहीं रही।
‘अरे फेरे लेने को थोड़ी कह रहा हूँ।’
‘हाल चाल पूछना तो बनता है।’
फिर तू खुद ही पुलिस का बड़का साहब है, अब डर काहे का।
फत्ते बोला ठीक है चल मिलते हैं।
हेलो! मैडम, नमस्कार।
माइसेल्फ, फतह बहादुर, डी एस पी, जिला गाजियाबाद।
मनोरमा भी पहचान गयी।
अरे फतह आप।
बहुत दिन बाद मिले,
अच्छा लग रहा है।
इनसे मिलो, माय हब्बी, सुदेश।
हेलो सर! दोनों ने हाथ मिलाया।
काफी देर तक पुरानी बातें यादें दुहरा उठी।
सुदेश भी बहुत अच्छे मिजाज का इंसान था।
फत्ते बोला, मैं थोड़ा ठिठुक रहा था,
तुम्हारी अपनी दुनिया है,पता नहीं क्या सोचो।मिलकर बहुत शानदार अनुभव हुआ। पूनम, संतोष रजनी, इनमें किसी से बात होती है? मनोरमा बोली-सब अपनों के साथ मस्त हैं। कभी कभी ‘फोनिकली’बात हो जाती है।
क्या कर रही हो आज कल।
मनोरमा बोली- मेरे पिताजी कहते थे,तुम दो नौकरी कर सकती हो ।
टीचर, या डॉक्टर।
सो मैंने चुन लिया।
एम ए (हिस्ट्री, हिंदी ) एम एड, करके, लग गए काम पर।
मेरा अपना कॉलेज है।
मैं उसमें प्रिन्सिपल हूँ,
सुदेश प्रबंधक है।
ससुर जी।बीस साल से प्रधान है।
हालांकि सुदेश मेरे पिताजी की पसंद हैं, पर अब मुझे सबसे पसन्द हैं।हम खुश हैं।
थोड़ी बात हुई फिर फोन नम्बर का आदान प्रदान कर फत्ते यह कहकर विदा हुआ। मनोरमाजी सुदेशजी, कोई मेरे लायक कोई काम पड़े जरूर याद करना। फतह बहादुर खुश था, यह सोचकर कि उसकी सफलता का श्रेय कहीं न कहीं मनोरमा भी जाता है, और मनोरमा भी अपनी दुनिया में सफल और खुश है।
भरत के लिये साइकिल खरीदा।
बहन के लिये सोने की चैन लेकर अम्मा को दिया। अम्मा से बोला, अगली छुट्टी में बहन से मिलने जाऊंगा, इस बार टाइम नहीं मिला।
अपनी पत्नी को सब वृतांत बताया। फोन पर बात कराया।
छुट्टी खत्म।
फतह बहादुर डियूटी पर।
आज शालू मनोरमा और फत्ते सुदेश भरत आपस में दोस्त थे।
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