वह काटती फसलें (एक महिला किसान पर कविता)- कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
वह काटती फसलें
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(एक महिला किसान पर कविता)
कवि शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
वह काटती फसलें
देखा मैने उसे धूप में लिये जाते तसले |
न कोई छायावान
वृक्ष वह जिसके तले मिटाये थकान ||
लेके आँचल, पोंछे श्रमजल,
बहे छलछल, अँग सुकोमल,
चंद्र हँसिया हाथ,
मानो चंद्र को ले साथ,
लेकर उसी से ठंड करती फसल पर प्रहार |
शीष ऊपर भानु
ग्रीष्म त्र-ृतु के दिन
गगन से बरसता कृशानु
दिक् में झुलस रही लपट
कर रही उससे कपट
शिथिलता तन छा गई,
थकता हुआ तन ले
वह काटती फसलें |
देखते देखा मुझे एक बार तो
लग गई फिर काम वो निष्काम जो
देखकर एक दृष्टि से
फिर काज में वह लग गई
वह भीगती श्रम-वृष्टि से,
जीवन हुआ निस्सार
क्योंकि उसको ना मिला उसका कभी अधिकार |
एक क्षण के बाद हँसिया कर में ले,
प्यास हित वो हस्त में जल ले,
कार्य में लगते हुए कहने लगी-
“मैं काटती फसलें |”
~शिवम् सिंह सिसौदिया ‘अश्रु’
ग्वालियर, मध्यप्रदेश
सम्पर्क- 8602810884, 8517070519