वह कठपुतली अब भाग चली
वह कठपुतली अब भाग चली
धागों में बंधी थी जो
वह कठपुतली अब भाग चली
हीरों से जड़ी थी जो।
तोड़ के हर डोर
जिससे वह बंधी थी
अपनी कमान
अपने हाथों में उसने ली
वह कठपुतली अब भाग चली।
सोने के पिंजरे से
काटों के खेतों में
उसने हर लड़ाई लड़ी
वह कठपुतली अब भाग चली।
आसमान से ऊंचे सपने
आंखों में भरी
क्षितिज को छूने की
ख्वाहिश थी जिसकी
वह कठपुतली अब भाग चली।