“वह अबला ही कहलाती”
सुबह आंगन बुहारती , सबकों चादर हिलाकर जगाती,
कटोरी से दूध पिलाती , चूल्हे की रोटी खिलाती ,
कभी सर्दी में लकड़ी सुलगाती,
कभी बारिश में टपकती छत से बचाती ,
कभी रजाई में पैबंद लगती ,
कभी आचार- मुरब्बा उठाती,
टुकड़ा- टुकड़ा धूप तापती,
सीने से मुझकों लगाकर गीले में ख़ुद सो जाती ,
पूरा जीवन बच्चों और परिवार पर हवन करके भी,
वह अबला ही कहलाती….
,, मां को समर्पित. ,,,