वही है सबके चमन का माली
कहाँ निकालोगे दिल की बातें
जगह तो कोई नहीं है खाली
कहीं पे नेता जमे हुये हैं
कहीं पे बैठे हुये मवाली
बुझा दो अंगार अपने ही अंदर
सुकून शायद मिल जाए थोड़ा
निकालकर गर बुझाया तुमने
सभी बजायेंगे तुम पे ताली
न सोचो कोई मदद करेगा
ख़ुदा पे रक्खो भरोसा केवल
उसीकी क़ुदरत उसकी फ़ितरत
वही है सबके चमन का माली
़़़़़ अशोक मिश्र