वही जो मेरी दवा रहा था
वही जो मेरी दवा रहा था
मरज़ को मेरे बढ़ा रहा था
वो फिर से आँसू बहा रहा था
बहुत दिनों तक जुदा रहा था
बदन की मेरे रिदा रहा था
कभी न ये फ़ासला रहा था
वो गीत उल्फ़त का गा रहा था
वो दिल की धड़कन बढ़ा रहा था
डुबा के माना वो नाव मेरी
यकीन जिस पर सदा रहा था
है आज उसमें सभी बुराई
कभी वही तो भला रहा था
उसे कहा है बुझा दे इसको
जो आग घर को लगा रहा था
वही अँगूठा दिखा रहा है
मेरा वही रहनुमा रहा था
सराब में वो भी फँस गया है
जो सागरों में सदा रहा था
वो आज भी तो मेरा ख़ुदा है
जो कल भी मेरा ख़ुदा रहा था
शब्दार्थ:- सराब=मृगतृष्णा/भ्रमजाल
डॉ आनन्द किशोर