वही अपना किनारा है
समंदर का करें हम क्या हमें झरना ही’ प्यारा है,
जहाँ दिल प्यास मिट जाए वही अपना किनारा है ।
उठाकर हाथ छू लो तुम बुलंदी चढ़ शिखर चूमो,
मे’री माँ का फटा आँचल मुझे आकाश सारा है ।
सबक नाक़ामयाबी का रखो ग़र याद जीवन में,
मिलेंगी मंज़िलें ख़ुद ही,भरोसा अब हमारा है ।
भले कर क़ैद लो चंदा पड़ी बेड़ी बहारें हों,
शरद की साँझ का तट पर बड़ा अद्भुत नज़ारा है ।
दबाकर चोंच में तिनका बनाती आशियां चिड़िया,
घरौंदा प्रेम का देखो मुहब्बत से सँवारा है ।
दीपक चौबे ‘अंजान’