वसूली।
भारती बाबा के पिताजी बहुत परेशान थे। मांझा इलाके के एक यादव जी ने उनकी सराफे की दुकान से अपनी बेटी के विवाह में आभूषण बनवाए थे। कुछ रकम उन्होंने दे दी थी और कुछ रकम बकाया थी। बेटियों के विवाह में अक्सर ऐसा होता रहता था। पिता धीरे धीरे बकाया रकम वापस कर देता था। पर यादव जी तो किसी दूसरी ही मिट्टी के बने थे। रुपए वापस करने कीउनकी नीयत ही नहीं थी। पिता जी ने भारती बाबा को बुलाया और आदेश दिया : लाल आज उन यादव महाराज के पास जाओ और रकम वसूल कर लौटना।
लाल : यदि उसने न दिया तब ?
पिताजी : कोई निश्चित समय सीमा लेकर आना ।
लाल : यदि उसने उससे भी इंकार किया तो ?
लाल भारती को मालूम था की यादव जी कठोर मिट्टी के बने हैं। इसलिए वह अपने पिताजी से स्पष्ट आदेश चाहते थे। पिताजी थोड़ी देर उधेड़बुन में पड़े रहे। फिर अंततः उन्होंने कहा : अगर दोनों स्थितियों में से कोई नहीं बन पाएगी तो तुम्हे जो समझ आए वह करना। पर मारपीट मत करना।
पिताजी जानते थे की मांझा के उस यादव बहुल इलाके में यादवों से मारपीट में पार पाना असम्भव है। इस रास्ते से रकम वसूली संभव होती तो वे कब का कर चुके होते। उन्होंने उस रकम को बट्टे खाते में डाल दिया था। यह अंतिम प्रयास था। कुछ मिलता तो भी ठीक कुछ मिलता तो भी ठीक।
लाल बाबा अपने मिशन पर रवाना हो गए और पिताजी काम में व्यस्त हो गए।
ध्यान रहे यह घटना उस काल खंड की है जब सेल फोन तो दूर आम लोगों को लैंड लाइन की सुविधा भी नहीं थी।
काफी समय व्यतीत हो चला था पर पिताजी को कोई चिंता नहीं थी क्योंकि मांझा बड़ी दुरूह और दूर की जगह थी वहां आने जाने में समय लगता ही था।
कुछ समय पश्चात लाल भारती पिताजी के सम्मुख मुठ्ठी बांधे खड़े थे।
पिताजी: रकम प्राप्त हुई ?
लाल: जी बाबूजी।
पिताजी: कितनी ?
लाल बाबू कुछ बोले नहीं और अपनी एक मुट्ठी खोलकर प्राप्त रकम उनके सामने रख दी। जो वस्तु सम्मुख थी उसे देखकर पिताजी हैरान थे।
पिताजी : यह क्या लाए हो ?
लाल : जी उसकी मूंछे उखाड़ लाया हूं ।
पिताजी : तुमसे कहा था की लड़ाई झगड़ा मत करना , अपने काम में ऐसा थोड़ा बहुत होता रहता है।
लाल : मैं जब उनके घर पहुंचा तो पता चला की वे अपने खेतों में गुड़ाई करने गए हैं। मैं खेत पर पहुंचा और उनसे तगादा किया। पहले तो वे गुड़ाई रोक कर कुछ समय मेरी तरफ देखते रहे। फिर बोले भाग गोसाई की #ट वरना यहीं गाड़ दूंगा। इसके पहले वे कुछ और बोलते मैंने झपट्टा मार कर उनकी लहलहाती हुई मूंछों की फसल को नोच लिया अब यही आपकी रकम है।रुपया न देता ठीक था पर गाली काहे दिया ?
पिताजी कुछ देर तक मूंछों की तरफ विचित्र भाव से देखते रहे। फिर अपने एक नौकर को आवाज दी।
पिताजी : इस मूंछ को एक डिब्बे में सम्हाल कर रख दो , यादव जी की इज्जत का मामला है, हो सकता है यादव जी इसे वापस लेने आएं।
फिर उन्होंने लाल भारती की पीठ थपथपाई।
पिताजी ने कहा: अच्छी वसूली की है। रकम नहीं मिली तो कोई हर्ज नहीं गाली की कीमत तो वसूल लाए।
कुमारकलहंस।13,01,2023,बोईसर , पालघर।