वसुधैव कुटुम्बकम्
करना है जो कर लो मानव, पर मत भूलो अपना उद्यम ।
इस जग के हैं बस हम पंछी, जाने कब किधर उड़ चलेंगे हम।
क्यो सोच रहे हो यह मेरा, वह है तुम्हारा, बन जग बैरी, मत करो अधम ।
मानव है मानव का बंधु, फिर क्यों करते हम और तुम ।
हे मानव निज स्वार्थ त्याग कर, दीन हीन पर करो रहम ।
जो नर मरते नाहक जीवन से, उनके समृद्ध पथ पर कुछ करो करम ।
तुम मानुष शूरवीर धरा के, हरण करो औरों का तम ।
हम सब हैं जिस धरणी के ऋणी, करो न उनका गौरव कम ।
मानव का मानव से नाता ,जोड़ रहेंगे एक दिन हम ।
पुरुषार्थ प्रदर्शन करना है तो, मानवता का कर उद्गम ।
परोपकारी बनो जगत के, अलख जला वसुधैव कुटुम्बकम् ।- –
* उमा झा*