“तुम हो पर्याय सदाचार के”
तुम हो पर्याय सदाचार के
बरसाते रस सदा प्यार के
खिले रुप सदा सलोना
मुख मंडल पर तेज बिछौना
तुम बिन है सारा जग सूना
मात-पिता का तुम हो गहना
श्रेष्ठ जनों का आदर करना
पलकों बीच सदा ही रहना
पढ़-लिख कर तुम ज्ञानी बनना
मन में शिष्टाचार की ज्योति जलाना।
झूठ नहीं सिर तुम्हें सुहाएं
मन को साफ निरंतर रखना
सब देख तुम्हें आनंदित होएं।
अभिवादन झुक, सबका करना।
राकेश चौरसिया