“ वसुधेव कुटुम्बकंम “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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जमीं पर हम रहते हैं आसमाँ पे घर बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
ना दूरी रहे कोई ना ,
मिलने की बंदिश हो,
सबों के पास रहकर,
नकोई भी रंजिश हो!!
मिलन हो प्यार से सबका मंदिर ऐसाबनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
नहीं हो धर्म का संकट ,
सभी धर्मों की पूजा हो ,
रहे सद्भावना सब में ,
नहीं कोई भी दूजा हो !!
प्यार से ही प्यार का पैगाम सबको हम देना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
सब एक मानव हैं यहाँ,
रंग रूप भले भिन्य हो ,
रक्त बहता एक सा ही ,
देश क्यों ना भिन्य हो !!
देश को हमने ही बनाया एक बार स्वर्ग बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
युद्ध से विध्वंश होता ,
मानवता विलखती है ,
कटुता में फँसकर प्राणी ,
नर -नारी सब रोती है !!
युद्ध नहीं है विकल्प कभी हम शांति बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
धरती का है कर्ज बहुत ,
हम उसे बचना चाहते हैं ,
कॉर्बनउत्सर्जन दानव को ,
सबक सीखना चाहते हैं !!
खुली साँस के परिवेशों में सबको रखना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं!!
जमीं पर हम रहते हैं आसमाँ पे घर बनाना चाहते हैं !
हमारी हसरतें ऐसी है सबको अपना बनाना चाहते हैं !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
भारत
07.05.2022.