वसुधा बनी दुल्हन
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धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
फूलों की है कलाकारी
रंगों से भर गया कौन
महकती धरा पर ये
खुशबू भर गया कौन
धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
किस ने दी हरियाली
और हरा भरा उपवन
है प्रकृति का करिश्मा
क्या ये धरा का यौवन
धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
पेड़ पौधों कि कतारें
ये बेलों की लिपटन
बादलों को करते हैं
ये पर्वत भी चुम्बन
धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
पल – पल है चलती
नदियों की धड़कन
भटकते , उफनते
साहिल की तड़पन
धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
धरती के मस्तक पे
चांद करता है वंदन
धरा का कण कण
है सूरज से रौशन
धानी चुनरिया ओढ़ बनी वसुधा दुल्हन
बादलों के घूंघट में चुप – चुप सी मौन
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© गौतम जैन ®
हैदराबाद