— वसीयत —
नाम ही कुछ ऐसा है
सुनकर अनायास अलग सा
दिमाग में भर जाता है
धन दौलत की भूख
शायाद कभी ख़त्म होगी
यही सब की सोच में आता है
कब मरेगा यह
कब सब मेरे नाम होगा
दिन रात सोचा करता है
काश इन सब से दूर जाकर
इंसान वसीयत में
अछे विचार , अछे संस्कार
दे जाए तो
ऐसी भूख स्वत ही ख़त्म हो जायेगी
न हो किसी से कुछ चाहत
न सर पर इतना बोझ हो
न इंसान इतना कमजोर हो
यही वसीयत चाहिए सब को
सब तरफ बस..शान्ति का माहौल हो
अजीत कुमार तलवार
मेरठ