वसंत
फैला चारों ओर सुगंध
हरा भरा है दिग दिगंत
पीली पगड़ी बाँधे दिखती
सरसों के फूलों की धरती ।
यह दृश्य सबको सुख देती
इसका कभी न होवे अंत
सुखद रहे नूतन वसंत ।
झूम रही है शस्य श्यामला
कोयल गाती मीठी धुन
मन प्रसन्न हो उठता है ।
बहती सुखद मलय गंध
सुखद रहे नूतन वसंत ।
हरियाली खुशहाली लायी
वृक्षों मे नव कोपल आयी।
बीत गया पतझड का मौसम
नयापन दिखता हर रंग
सुखद रहे नूतन वसंत ।
परिवर्तन का कारण है।
नीरस के बाद सरस आये
सुख दुःख मिलता एक संग
सुखद रहे नूतन वसंत ।।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र