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27 May 2018 · 1 min read

“वसंत” हाइकु

“वसंत” हाइकु

(1)आया वसंत
मेरे घर-आँगन
खिले पलाश।

(2)नव कोपलें
मदमाती सी प्रीत
मनवा झूमे।

(3)प्रीत के रंग
प्रणय का उत्सव
लाया वसंत।

(4)पिया वसंत
चंचल चितवन
बौराया मन।

(5)वासंती हवा
मीठी प्रीत जगाए
प्रीतम आए।

(6)स्वर्णिम आभा
वसुधा पुलकित
झूमा वसंत।

(7)रागविलास
ऋतुराज सुनाता
मन वासंती।

(8)फूलों की हँसी
चिड़िया का संगीत
प्रीत जगाए।

(9)सरसों फूली
वसुधा ने पहनी
चूनर पीली।

(10)खिले पलाश
नस-नस में घोले
प्रीत की आस।

(11)वासंती प्यार
महका ऋतुराज
अंग उमंग।

(12)भ्रमर झूलें
बैठे आम्र की डाली
हवा झुलाए।

(13)कस्तूरी गंध
वसंत मनमीत
साँसें महकीं।

(14)कली मुस्काई
मंद-मंद बयार
झुलाती झूला।

(15)प्रेम के गीत
आसमान में गूँजे
गोरी मुस्काई।

(16)रजनी रीझी
प्रीतम घर आए
दो-दो वसंत।

(17)मुस्काया भानु
हल्की सी सिहरन
देह को भाती।

(18)पीली चादर
सरसों का बिछौना
तन महका।

(19)आम के बौर
तरुवर पे छाए
भौंरे मुस्काए।

(20)केसरी धूप
वसंत छितराता
अनोखे रंग।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी।(उ.प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर।

Language: Hindi
337 Views
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