वसंत पञ्चमी
उषाकाल में दिनकर देख,पर्ण बीच कली मुस्काई
मंद मंद मकरंद बयार, दौड़ी पवन संग चलि आयी ।
पक्षियों का कलरव सुन, मन हृदय अह्लादित होता
वन बाग उपवन वाटिका मे, संगीत मधुर स्फुटित होता ।
खेतों मे सरसो के फूल , देख हृदय हर्षित होता
गेहूं की हरियाली छायी,मन धरा को अर्पित होता ।
पुराने पर्ण हैं छूट रहे, वृक्षों पर नव पल्लव होगा
स्मृतियां भी रोक न पायें, पर्व यही नव उत्सव होगा ।
जब बसंत की ऋतु है आती,धरा स्वयं मुस्काती है
सरस्वती पूजन करने को, प्रकृति स्वयं आ जाती है ।