वसंत के दोहे।
गंध, रंग, रस, राग ले, आया रुचिर वसंत ।
आहट सुन ऋतुराज की, हुआ शिशिर का अंत।
पीत -पत्र सब भूमिगत, डाल -डाल नव -पात
सस्मित कलियाँ,पुष्पदल,स्निग्ध,सुघर द्रुम-गात।
उड़े पवन लेकर अमित, सुरभित सुमन – पराग
पीकर रस मधुकर चले, लिए अधर मृदु – राग।
मत्त, मगन नित कोयली, फुदक रही तरु – डाल
बदली रुत, बदली सहज, खगकुल की हर चाल।
झुकीं डालियाँ बोझ से, जो कोमल , सुकुमार
उन्मीलित सारा चमन , मंजर का अम्बार।
झूमे उपवन फुल्ल हो, स्वागत है ऋतुराज
वसन हरित नव कुंज के, बौर ललित सरताज।
अनिल मिश्र प्रहरी।