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12 Feb 2019 · 2 min read

वसंत के आगमन पर

वसंत के आगमन पर –
On the arrival of Spring – in Hindi & English

सहमी सी वसंत ऋतु थी, सोच रही,
कहाँ किसे लुभाऊँ, अपनी मादकता से,
हर कोई व्यस्त यहाँ, केवलअपने में है,
कुछ को छोड़, कहाँ कोई, अब कहीं भी,
वसंत के आगमन पर, कुछ कहता है.
.
कहाँ कोई, परिधान पहनता, अब वासंती,
और कहाँ कोई, अब राग सुनाता वासंती,
हर धुन अब यहाँ, शोर में ही खो जाती है,
हर राग, बस तीव्र ध्वनिमें, सो जाता जहां.
.
सरसों के पीले फूलों की, मादकता यहाँ,
अब कहाँ विभोर कर पाती, मन को भी है,
अब कहाँ दिखती, कंघी करती बयार कोई,
जो लहरातीहो, आँचल किसी गाँव बाला का.
.
सहमी सकुचाती सी वसंत ऋतु थी, सोच रही,
कहाँ किसे लुभाऊँ अब मैं, अपनी मादकता से,
किसके ऊपर बिखेरूँ, ये अमृत भरा कलश मैं,
कितना अपने मेंही है, सिमट गया इंसान जहां.
.
With a little nervousness the season of spring was thinking,
Where, do I enchant anyone, by the wine of my youth,
Everyone is so busy with its own
Leaving only few, where now anyone says anything,
On the season of spring
When spring arrives with all its charms spreading its alluring wine. 01
.
Where someone now seen clad in yellow Vasanti wears,
And where someone sings in full throated ease
Raag Vasanti to charm the human hearts,
Every tune now, vanishes here,
In the manmade noises all around.
Every Raag (melody) get lost in the crowd
of acute sound. 02

The intoxicating scene of, yellow mustard flowers now,
No longer fills the heart with joy and pleasure here,
And now, very rarely we see,
the winds combing the crops hairs,
Which flies the hanging Aanchal, of a village woman’s sari. 03
.
With a little fear and shyness in her approach,
the new bride of spring season was thinking,
Where and whom should I charm,
by the beauty of my intoxicating wealth,
On whom should I spread my urn?
which is filled with the nectar of pleasure and intoxication,
Here where, everyone has become, so self centered only. 04
.
Ravindra K Kapoor
12 02 2019

Language: Hindi
1 Like · 439 Views
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