वसंत का स्पर्श
वसंत का स्पर्श
अब आनंद नहीं है
आदमी की आँखों में ।
‘जले पर छिड़का
गया नमक है ।’
कोई आशा बाकी नहीं है
आदमी के भीतर
सोये आदमी के जगने की ।
बेशक !
जिस गति से
बढ़ रही है
यह दुनियाँ आगे-आगे
उसी रफ़्तार से
जा रहा है
आदमी पीछे-पीछे ।
यकीन है कि –
भविष्य की दुनियाँ में
सब-कुछ होगा
सारा साज़-ओ-सामान
होगा ऐश्वर्य का ।
किन्तु उसमें नहीं होगा
आदमी और
आदमियत का आनंद ।
ईश्वर दयाल गोस्वामी
कवि एवं शिक्षक ।