वसंत ऋतु
मीठी सूरज की चमक , फैली फूलों की महक , उड़ी रंगो की धमक
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
गूंजे भंँवरों की गुंजन , होता नव पल्लव सृजन , मधुर कोयल का श्रवन
वन उपवन में छाई बहार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
नवयुगलों का मिलन , एक हुए दो मन , रति पति मदन
नवजीवन का अभिसार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
छाई मन में उमंग , उठी तन में तरंग , उड़ चले विहंग
खुशियों से नाच रहा संसार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
वन में टेशु की लाली , खेतों में गेहूं की बाली , शादी में रस्मों की गाली
प्राकृतिक जीवन का यही व्यवहार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
फाग गीतों की थाप , फागुन के रंगों की छाप , नाचें मदमस्त होके आप
होली रंगों का आया त्यौहार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
मिटे मन का ये मैल , गोरी देखे पिया की गैल , ओम् सुन छबीले छैल
यही तो इस जीवन का सार है
ऋतु वसंत का यही तो श्रृंगार है
ओमप्रकाश भारती ओम्
बालाघाट मध्यप्रदेश