वसंत ऋतु
नाम : कृष्ण कुमार
कविता शीर्षक : वसंत ऋतु
हरियाणा
मंद मंद समीर चले पुष्प मुस्काते हैं.
वसंत आगमन पर सबके चेहरे खिल जाते हैं।।
मैं भ्रमण कर रहा हूँ खेतों का यहां चारों ओर हरियाली है
कहीं सरसों कहीं चना तो कहीं गेहूं की बाली है
पीले हाथ किए हुए लग रही यहां सरसों मतवाली है
हवा की ठंडी बौछारों से लहराई चने की डाली है
ऋतुओं में मैं वसंत हूं ऐसा भगवान बतलाते हैं
वसंत आगमन पर सबके चेहरे खिल जाते हैं।।
वृक्षों की टहनियों पर जब नई कोंपलें आती है
कोयल अपनी मधुर वाणी से पूरे वातावरण को गूंजाती है
फूलों की यह सुगंध पूरे सृष्टि को महकती है
यह सुंदर प्रकृति मानव को लुभाती है
वसंत मानव के जीवन में नई उमंगे लाती है
आनंद और उल्लास के रंग भर जाती है
प्रकृति और मानव का गहरा नाता है
प्रकृति के सानिध्य में ही मानव मुस्काता है
वसंत पंचमी के अवसर पर बच्चे खुशी से पतंग उड़ाते हैं
वसंत के आगमन पर सब के चेहरे खिल जाते हैं
वसंत आगमन पर सबके चेहरे खिल जाते हैं।।