वसंतोत्सव
वसंतोत्सव
कुहू कुहू है कोयल करती,
मस्त मगन हो नाचे मोर।
देखो फिर आ गया वसंत,
प्रकृति गाये चारों ओर।।
कल-कल करता झरना बहता,
मधुर संगीत सुनाता है।
शीतल मंद समीर सुमन के,
शिखरों को सहलाता है।।
वाग्देवी की वीणा चहुँ दिश,
मधुर तान सुनाती है।
श्वेत वसन में माँ शारदे,
मंद-मंद मुस्काती है।।
षड् ऋतुओं में सबसे उत्तम,
कहलाता है यह ऋतुराज।
इसी ऋतु में वसंतपंचमी,
इसी ऋतु में होता फाग।।
इसी ऋतु में कामदेव को,
भाती क्रीडा रति के साथ।
प्रकृति का सौन्दर्य निखरता,
सर्वत्र भरा रहता उन्माद।।
सर्वत्र भरा रहता उन्माद।।
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रचना- पूर्णतः मौलिक एवं स्वरचित
निकेश कुमार ठाकुर
गृहजिला- सुपौल
संप्रति- कटिहार (बिहार)
सं०-9534148597