#वर_दक्षिण (दहेज)
#वर_दक्षिण (दहेज)
___________________
पूर्व में जो बन गया है, उस नियम पर नित्य चल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेच दे चाहे महल।
जन्म देकर एक बेटी,
पाप ही तो कर दिया।
दे रहा वरदक्षिणा क्यों,
कह रहा कि घर दिया।
रक्त का हर एक कतरा,
बेचने की कर पहल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेंच दे चाहे महल।।
ब्याहने बेटी चला है,
बेच दे घर- बार तू।
हाथ में लेकर कटोरा,
साध ले दरबार तू।
देखने वालों की क्यों न,
वक्ष ही जाये दहल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेंच दे चाहे महल।।
मान की मत आस रखना,
बस उन्हें सम्मान दे।
निज सुता के हर्ष खातिर,
दान स्वाभिमान दे।
है विनाशककता भरा इस,
रीति का निकला न हल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेंच दे चाहे महल।।
स्वयं को भी बेचना यदि,
पड़ गया तो बेच दे।
आँख उनके कुछ तुम्हारा,
गड़ गया तो बेच दे।
तब मिले इच्छित कदाचित,
कुछ खुशी के आज पल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेंच दे चाहे महल।।
क्यों सुता का बाप होना,
इस जगत में पाप है।
हे विधाता! बोल दो यह,
पाप है या श्राप है?
सोचते ही सोचते यह,
जिन्दगी जाये न ढल।
दान दे इच्छित सभी कुछ, बेंच दे चाहे महल।।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’