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4 Mar 2021 · 3 min read

वर्ष 2020 में मेरी साहित्यिक उपलब्धियां

वर्ष 2020 में मेरी साहित्यिक उपलब्धियां

वैसे तो वर्ष 2020 श्रीमान कोविद नाइंटीन द्वारा अग्रिम रूप से आरक्षित कर लिया गया था, जिस कारण उन्हीं के चर्चे साल भर चले, कभी टोटल लॉकडाउन रहा तो अनलॉक में भी जितने आयोजन हुए वह उन्हीं को समर्पित रहे।
फिर भी जनवरी फरवरी के माह में कुछ आयोजन अवश्य हुए, जिनमें उल्लेखनीय आयोजन डा• रीता सिंह की काव्य कृति वीरों का वंदन का चन्दौसी में लोकार्पण का कार्यक्रम था। उक्त कार्यक्रम में डा• रीता सिंह के विशेष अनुरोध पर हम भी गये थे। हमारे साथ ही दादा तिवारी जी, डा• अजय अनुपम जी, प्रखर जी, व डा• महेश दिवाकर जी भी गये थे। कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ। वह दीगर बात है कि हमें अपनी वीरता दिखाने का अवसर नहीं मिला, और हमारी लिखी हुई समीक्षा जेब में ही कसमसाती रह गयी।
वर्ष की एकमात्र उपलब्धि दिनांक 1 मार्च 2020 को अखिल भारतीय साहित्य परिषद, मुरादाबाद द्वारा हमें सम्मानित करने की रही। महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय में आयोजित उक्त कार्यक्रम में हमारे साथ साथ आदरणीय फक्कड़ मुरादाबादी जी, श्री विवेक निर्मल जी व मोनिका मासूम जी को भी सम्मानित किया गया था।
अबकी बार होली के अवसर पर दो तीन कार्यक्रमों में आमंत्रण था, किंतु आयोजन से पूर्व ही कोविद नाइंटीन महोदय की वक्र दृष्टि के कारण वह सभी आयोजन रद्द हो गये। आज तक हमें शनि की साढ़े साती से डर लगता था लेकिन ये कोविद की वक्र दृष्टि तो और भी खतरनाक थी।
होली का मजा भी इसने समाप्त कर दिया। न किसी ने रंग लगाया न कोई गले पड़ा या पड़ी।
खैर भाईसाहब 22 मार्च को जनता कर्फ्यू में हमने भी जमकर थाली पीटी और पत्नी के साथ थाली पीटते हुए सैल्फी फेसबुक पर डाली, फिर मोदी जी के आह्वान पर दिये भी जलाये और फोटू डाले। वैसे भी करने को और कोई काम बचा ही न था। लॉकडाउन में पत्नी को भी मानो विशेषाधिकार मिल गये थे। घर में सैनेटाइजेशन के नाम पर झाड़ू पोंछा आदि जैसे कार्यों का डेमो देना पड़ा । अब एक बार डेमो दिखाने में तो कोई सीखता नहीं है अतः ये कार्य निरंतरता की गति को प्राप्त हुआ। पत्नी पूरे लॉकडाउन में नये नये पकवान बनाकर खिलाने लगीं। हम भी चुपचाप खाते रहे और तारीफ करते रहे। जानते थे कि भूल से भी यदि कमी निकाल दी तो इसका भी डेमो देना पड़ जायेगा।
इस दौरान कुछ हास्य रचनाएं भी लिखी गयीं जिनमें लॉकडाउन की शादी और लॉकडाउन की मधुशाला अत्यधिक पसंद की गयीं। इसकी पंक्तियां कुछ अखबारों की हैडलाइन भी बनी।
लॉकडाउन के दौरान कवि गोष्ठी व सम्मेलन भी बंद थे, अतः कवियों ने अपनी भस्स मिटाने के लिये फेसबुक पर लाइव आयोजन शुरू कर दिये, फिर गूगल मीट पर आयोजन शुरू हुए, जो अभी तक चल रहे हैं। हम भी चार पाँच लाइव आयोजनों में कृतार्थ हुए। ऑनलाइन सम्मानित भी हुए । ऑनलाइन व्हाट्सएप कवि सम्मेलन भी होते रहे, ऐसे ही एक आयोजन में हमें कोरोना वारियर्स का सम्मान भी मिला, जो हमें बगैर युद्ध करे शौर्य चक्र मिलने जैसी अनुभूति करवा गया।
साल का अंत आते आते सर्वप्रथम 24 दिसंबर को पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी बाजपेई जी की स्मृति में भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में सम्मिलित हुए व विशिष्ट आतिथ्य पाकर गदूगद हुए।
यही कुल जमा वर्ष 2020 की उपलब्धि रही।
और क्या क्या बताएं साहब,
हमारे भीतर का कवि,
हालात का नहीं बीस का मारा है,
अब तो इक्कीस बस तेरा ही सहारा है।

श्रीकृष्ण शुक्ल,
MMIG 69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।

Language: Hindi
Tag: लेख
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