वर्ष बीस
जाता हूँ मैं छोड़ कर , मिलो नहीं अब आप
साल बीस हूँ बुरा मैं , मुझे मिला है श्राप
मैंने की है बहुत अति , आऊँ अब नहिं लौट
पंख पखेरू उड़ गये , देता ऐसी चोट
घूँट खून के पियोगें , आने वाले साल
चला समय का चक्र जो , भूलो कैसे हाल
दर्द पीकर खो दिये है , जिनने अपने लाल
हाँ हाँ मैं तो वहीं हूँ , नालायक सा साल
रोजगार को छीन , रोका मनुज विकास
हाथ नौकरी गई तो , किया बहुत उपहास
सिंदूर छीना मांग का, दे दी असंख्य मौत
करामात हर रोज की, अपने लगते सौत
लगा गले से मौत को , करता क्रंदन करूण
फूट फूट रो रहा है , होता दुख दारूण
वापस आना नहीं तुम , कर दूँ तेरा नाश
किया बहुत नुकसान है , पड़ा रहे बन लाश