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26 Jun 2021 · 1 min read

वर्षा…..

काले.काले ,
बालों को लहराते ,
कोयल सी ,
मधुर राग सुनाते ,
कभी चूड़ियों की खनक ,
तो कभी छम.छम ,
पाव बजाते ।
उड़ते पंछियों के बीच से ,
उतर रही है वह ,
अप्सरा सी ,
**वर्षा****।

कभी बागों में झूमती ,
कभी खेतों में घूमती ,
कभी नाचती ,
घर आंगन में ,
कभी मिट्टी को चुमती ।
कभी पहाड़ो से उतरती ,
थिरकती हुई वह ,
अप्सरा सी ,
***वर्षा ***।

कितनी तड़प ,
कितनी वेदना लिए ,
आ गिरी तन पर ,
नाच उठा मन ,
बिखर गई मिट्टी की ,
सौधी.सौधी खुशबू ,
घर आंगन ।
हरियाली लिए ,
उतर रही है वह ,
धरती पर ,
अप्सरा सी ,
***वर्षा ***।

“””यह कविता जुलाई 2006 में लिखा था”””
””सुनील पासवान कुशीनगर””
14/06/2021

Language: Hindi
1 Like · 496 Views
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