वर्षा
घोर घनेरे घन घिर आये।
अंधकार आतुर हो छाए।
दिया प्रलोभन मोर नचायें।
मन रंजन कर जल बरसाए।
अब अंतर मन हुआ आह्लादित।
अम्बर में घोर घटा आच्छादित।
जलन शांत कर वर्षा आनन्दित।
घर पनघट तक जल विस्तारित।
धरा धूल घमस से खाली,
दलदल राह बह रही नाली।
घर के छप्पर जैसे जाली,
खेतों में भरती ख़ुशहाली।
ग्रामीणों के घर पर भारी,
आफ़त होती हरपल जारी।
मिट्टी की दीवारों की लाचारी,
गलतीं जब हो वर्षा भारी।