वर्षा
वर्षा
लो भैया वर्षा के दिन आए।
चारों ओर मेंढक अब
टर्र-टर्र कर खूब गाते हैं।
चुन्नी-मुन्नी टिंकू-बंटी
पानी में कागज के नाव बहाते हैं।
हाथों में सबके छतरी सुहाए
लो भैया वर्षा के दिन आए।
चम-चम चमकती है बिजली
गरजते हैं राक्षस बादल।
पसीने की हो गई छुट्टी
क्योंकि गर्मी हो चुका घायल।
गरम चाय-समोसे खूब रंग जमाए।
लो भैया वर्षा के दिन आए।
घर में दिखता अब नहीं
मेहनती बहादुर किसान।
धरती माता को खिला रहा
मूंग, उड़द, मूंगफली, धान।
अर्र त त त् जमकर वह गाए।
लो भैया वर्षा के दिन आए।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़