वर्षा के आगमन पे धार
वर्षा के आगमन पे धार
सफर में दिख रहे वादियों के मंजर
पर मुझे छूती ये हवा रूहानी मिजाज की है।
हरी भरी वसुंधरा पे सूरज की किरण
सुनहरी चमक के साथ आंखों में छपाक सी है ।
जो पर्वत साथ हैं कुछ खास ऊंचान पर है
मेघो को चूमते एक किरदार में है।
खेतों में नयी हरी एक प्यारी जान ऊग रही है
पंछियों की चहल-पहल लगता है लोरी गान चल रही है।
सड़क पे जानवर की कतार भाग रही है
पीछे एक व्यक्ति नेतृत्व के जोश में हकार्ल चल रही है
बादल भी कभी शेष कभी कृष्ण रंग ला रहे हैं
लगता है धरा वर्षा की प्यार पुकार चल रही है।
पानी की बूंदों की तरह पल नजरों में टप-टप गिर रहे हैं,
इंडोरामा के मंदिर के घंटों की दूर से ही कानों में शंखनाद बज रहे हैं।
हम सफर में शहर, गांव, नाका ही नहीं संस्कृति भी पार कर चले हैं
एक आस से एक विश्वास के पास चल पड़े हैं
मंजिल पास अब हो चली है
हम दिले धार के आसपास चल पड़े हैं
हर्ष मालवीय
एन. एस .एस. स्वयंसेवक
बीकॉम कंप्यूटर फाइनल ईयर
शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय हमीदिया
भोपाल मध्यप्रदेश